किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .
इस सड़ी गली व्यवस्था पर -
प्रेम पर ग़ज़ल - गाओ महुब्बत
के अनकहे फ़साने -
रोने बिसुरने के तो मिल जातें है -
सेंकडों नहीं - करोड़ों बहाने .
सोचता हूँ - सभी ठीक ही तो कहते हैं .
क्या करूँ - ये आंसू तो हमारी पलकों से -
ढलकते नहीं हरदम ढीठ की तरह
जमें रहते हैं .
इन्हें किसी नदी- समंदर में
डाल दूं- या पूरी ताकत से
आस्मां की तरफ उछाल दूं -पर
ऊपर उछाली हर चीज -
वापित आती तो है - धरती की
आकर्षणशक्ति - ये बतलाती तो है .
नहीं बच सकते - हर सवाल से
जो कदम कदम पर - पीछा करते हैं .
जो मुझे मरने नहीं देते - ना
खुद ही आत्म हत्या करते हैं .
कैसे असम्प्रक्त रहूँ - बताओ तो सही
इन जिन्दा सवालों को - पहले किसी
अतल पाताल में दफनाओ तो सही .
इतने ही सुखी हो तो - वो खुश रहने
का मन्त्र मुझे भी सिखलाओ तो सही .
इस सड़ी गली व्यवस्था पर -
प्रेम पर ग़ज़ल - गाओ महुब्बत
के अनकहे फ़साने -
रोने बिसुरने के तो मिल जातें है -
सेंकडों नहीं - करोड़ों बहाने .
सोचता हूँ - सभी ठीक ही तो कहते हैं .
क्या करूँ - ये आंसू तो हमारी पलकों से -
ढलकते नहीं हरदम ढीठ की तरह
जमें रहते हैं .
इन्हें किसी नदी- समंदर में
डाल दूं- या पूरी ताकत से
आस्मां की तरफ उछाल दूं -पर
ऊपर उछाली हर चीज -
वापित आती तो है - धरती की
आकर्षणशक्ति - ये बतलाती तो है .
नहीं बच सकते - हर सवाल से
जो कदम कदम पर - पीछा करते हैं .
जो मुझे मरने नहीं देते - ना
खुद ही आत्म हत्या करते हैं .
कैसे असम्प्रक्त रहूँ - बताओ तो सही
इन जिन्दा सवालों को - पहले किसी
अतल पाताल में दफनाओ तो सही .
इतने ही सुखी हो तो - वो खुश रहने
का मन्त्र मुझे भी सिखलाओ तो सही .