दादा -अब वापिस लौट आओ
कितने दिन हो गए -घर छोड़ कर गए .
अपने माता पिता माना गरीब हैं -
पर पांच- पांच बेटों के होते
इतने भी कहाँ बदनसीब है .
पता है- तुम्हारे जाने के बाद -
तीनो छुटके - भी जो
शरारती कहाँ थे -कम
भूरे-साहूकार के घर में फोड़ आये थे -
दिवाली के सुतली वाले बम .
तब से वे तीनो भी -आज तक
घर लौट के नहीं आये -मुझे
बहूत डर लग रहा है -लोग
उनके बारे में तरह तरह की
बात करते हैं- कहते हैं
साहूकार ने उन्हें पेड़ पर लटका
मार दिया है .
माँ की दोनों आँखों में -
मोतियाबिंद उतर आया है .
अब -तो बहूत बूढी हो चुकी है.
हमेशा तुम्हारी याद में रोती है.
देख आती है आज भी उस राह को -
जिस पर चल कर तुम गए थे और-
आज तक नही लौटे - उसकी तो
जिन्दगी ही बीत गयी -
तेरी याद में रोते रोते .
तुम्हे याद है -
गाँव का भूरा साहूकार -चोर
कब का खाली कर गया -
अपनी पुरानी वाली पुश्तेनी हवेली.-
बस गया है -कहीं और .
और हाँ - चाचाओं के -
बच्चे अब अपने साथ नहीं रहते.
बंटा लिए हैं अपने -हिस्से के
घर जमीन और खेत.
बाबा उस दिन बहूत रोये थे -
पर वे नहीं माने -और आज कल
अपने -दुश्मनों से हाथ मिलाये हैं-
वैसे हालत उनके भी-
कोई बहूत ज्यादा ठीक नहीं है -
कल ही किसी ने बताये हैं .
ये मेरा आखिरी ख़त है - अब भी
लौट आओ - खेत में बड़े बड़े
खरपतवार उग आये हैं - बंजर
जमीन हो गयी है -नहीं बोया .
तो फिर- कोई फसल नहीं होगी .
घर और -बाहर अपने परिवार की
बहूत हतक होगी .
(नेताजी सुभाष चंदर बोस को समर्पित)
कितने दिन हो गए -घर छोड़ कर गए .
अपने माता पिता माना गरीब हैं -
पर पांच- पांच बेटों के होते
इतने भी कहाँ बदनसीब है .
पता है- तुम्हारे जाने के बाद -
तीनो छुटके - भी जो
शरारती कहाँ थे -कम
भूरे-साहूकार के घर में फोड़ आये थे -
दिवाली के सुतली वाले बम .
तब से वे तीनो भी -आज तक
घर लौट के नहीं आये -मुझे
बहूत डर लग रहा है -लोग
उनके बारे में तरह तरह की
बात करते हैं- कहते हैं
साहूकार ने उन्हें पेड़ पर लटका
मार दिया है .
माँ की दोनों आँखों में -
मोतियाबिंद उतर आया है .
अब -तो बहूत बूढी हो चुकी है.
हमेशा तुम्हारी याद में रोती है.
देख आती है आज भी उस राह को -
जिस पर चल कर तुम गए थे और-
आज तक नही लौटे - उसकी तो
जिन्दगी ही बीत गयी -
तेरी याद में रोते रोते .
तुम्हे याद है -
गाँव का भूरा साहूकार -चोर
कब का खाली कर गया -
अपनी पुरानी वाली पुश्तेनी हवेली.-
बस गया है -कहीं और .
और हाँ - चाचाओं के -
बच्चे अब अपने साथ नहीं रहते.
बंटा लिए हैं अपने -हिस्से के
घर जमीन और खेत.
बाबा उस दिन बहूत रोये थे -
पर वे नहीं माने -और आज कल
अपने -दुश्मनों से हाथ मिलाये हैं-
वैसे हालत उनके भी-
कोई बहूत ज्यादा ठीक नहीं है -
कल ही किसी ने बताये हैं .
ये मेरा आखिरी ख़त है - अब भी
लौट आओ - खेत में बड़े बड़े
खरपतवार उग आये हैं - बंजर
जमीन हो गयी है -नहीं बोया .
तो फिर- कोई फसल नहीं होगी .
घर और -बाहर अपने परिवार की
बहूत हतक होगी .
(नेताजी सुभाष चंदर बोस को समर्पित)
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