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Tuesday, April 19, 2011

हमारी सम्वेदनाएँ मर चुकी हैं

हमारी सम्वेदनाएँ मर चुकी हैं -
या आत्म हत्याएँ कर चुकी है .

एक आदमी चार दिन के
अनशन करने से -पूरे
देश का हीरो बन जाता है .
पर मुल्क की आधी जनता-
अधपेट सोती है - पर इसकी
चिंता आखिर हमें  -
क्यों नहीं होती है .

अमीर देश के -गरीब अवाम
की बेबसी पर किसी  भी नेता
की आंख नम क्यों नहीं होती है.
इनकी सम्वेदना आखिर कौन सी
गहरी निंद्रा में सोती है .

मजे की बात है - किसी को कोई
फर्क नहीं पड़ता -ये आँख तो बस
यूँ ही रोती है-किसी को इसकी
चिंता बिलकुल भी नहीं होती है .

जालिमों  से -डंडे पड़वाने वाला
आज़ादी का -मसीहा कहलाता है .
देश नहीं पूरी दुनिया में -भगवान की 
तरह सम्मान पाता है- और
सीने पर गोलियां खाते हुए-
देश पर शहीद होने वाला -
अहिंसा के पुजारिओं की नजर में
आखिर बागी कैसे हो जाता है .

देश को गिरवी रखने वाला - इस देश
का नेता बन जाता  है - और
सीमा पर -आक्रमण झेलते हुए
शहीद होने वाले का पिता -मात्र 
पेशन का हकदार कहलाता है .

हमारी तलाश इन कमीने -चंद नेताओ
पर  आकर ख़तम क्यों हो जाती है
इन डेढ़ अरब की भीड़ में -क्या
हमे कोई भी नेता नजर नहीं आता है .
इन चोरों को - पहरेदार बनाना
आखिर हमें क्यों  भाता है .
 





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