अपना कहते भी हो - दूर-दूर रहते भी हो
ये कैसा दस्तूर चल पड़ा है आजकल .
पसीने की गंध को , खुशबुओं से दूर रख
अभी -सोया है फुसफुसा के जरा बात कर
ये आम आदमी नहीं है - अब ख़ास है यार ,
अरे अदब से जरा -दूर हट के मुलाकात कर .
बड़े गैर से -जरा अपने से -जाने क्यों लगते हैं
हमे ना जाने क्यों -ये सपनो की तरह ठगते हैं
रहनुमा बन के यूँही मेरे पास आओ तो सही
करी क्या खता -तफसील से समझाओ तो सही .
ये कैसा दस्तूर चल पड़ा है आजकल .
पसीने की गंध को , खुशबुओं से दूर रख
अभी -सोया है फुसफुसा के जरा बात कर
ये आम आदमी नहीं है - अब ख़ास है यार ,
अरे अदब से जरा -दूर हट के मुलाकात कर .
बड़े गैर से -जरा अपने से -जाने क्यों लगते हैं
हमे ना जाने क्यों -ये सपनो की तरह ठगते हैं
रहनुमा बन के यूँही मेरे पास आओ तो सही
करी क्या खता -तफसील से समझाओ तो सही .
जो कल तक -शिद्दत से छत की तलाश में था,
वो मेरा सरपरस्त - मालिक मकाँ है आजकल .
अंधेरो से निकल - रौशनी से कभी मिला भी नहीं,
कहता फिरता है - दिन में अँधेरा है आजकल.
वो मेरा सरपरस्त - मालिक मकाँ है आजकल .
अंधेरो से निकल - रौशनी से कभी मिला भी नहीं,
कहता फिरता है - दिन में अँधेरा है आजकल.
No comments:
Post a Comment