Popular Posts

Wednesday, April 27, 2011

मुक्तक

अपना कहते भी हो - दूर-दूर रहते भी हो
ये कैसा दस्तूर चल पड़ा है आजकल .

पसीने की गंध को , खुशबुओं से दूर रख
अभी -सोया है फुसफुसा के जरा बात कर
ये आम आदमी नहीं है - अब ख़ास है यार ,
अरे अदब से जरा -दूर हट के मुलाकात कर .

बड़े गैर से -जरा अपने से -जाने क्यों लगते हैं
हमे ना जाने क्यों -ये सपनो की तरह ठगते हैं
रहनुमा बन के यूँही  मेरे पास आओ तो सही
करी क्या खता -तफसील से समझाओ तो सही .

जो कल तक -शिद्दत से छत की तलाश में था,
वो मेरा सरपरस्त - मालिक मकाँ है आजकल .
अंधेरो से निकल - रौशनी से कभी मिला भी नहीं,
कहता फिरता है - दिन में अँधेरा है आजकल. 

No comments:

Post a Comment