बैसाखियों के सहारे जो -
घर से निकलते हैं -
यकीन मान -
वे बहूत दूर नहीं चलते हैं .
वे मस्तक कभी सम्मान से -
कहाँ उठा पाते हैं -
हम अपना अस्तित्व -
आखिर क्यों खोना चाहते हैं.
वे शासन के शरणागत- नहीं होते
उनके द्वारा तो -फरसे से
आततायी राजाओं के -
सर काटे जाते हैं .
तू बुझदिल -कमजोर नहीं है
आँधियों में तनकर खड़ा हो -
अपने कद से और-बड़ा हो
अपना सहारा आप बन .
(ब्राह्मणों को आरक्षण मांगने के सन्दर्भ में )
घर से निकलते हैं -
यकीन मान -
वे बहूत दूर नहीं चलते हैं .
वे मस्तक कभी सम्मान से -
कहाँ उठा पाते हैं -
हम अपना अस्तित्व -
आखिर क्यों खोना चाहते हैं.
वे शासन के शरणागत- नहीं होते
उनके द्वारा तो -फरसे से
आततायी राजाओं के -
सर काटे जाते हैं .
तू बुझदिल -कमजोर नहीं है
आँधियों में तनकर खड़ा हो -
अपने कद से और-बड़ा हो
अपना सहारा आप बन .
(ब्राह्मणों को आरक्षण मांगने के सन्दर्भ में )
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