जाओ यार - वापिस लौट जाओ
रास्ते बटोहियों के लिए होते हैं -
जो मंजिल तक चलते -पहुँच जाते हैं
फिर लोग चलने से - आखिर क्यों कतराते हैं .
मेरी लिए मंजिल - और रास्ते
दोनों एक ही हैं - चलता हूँ जरुर
पर कहीं पहुँचने के लिए नहीं
चलता हूँ - बस चलना है
फ़िक्र नहीं की मंजिल -
मिले या ना मिले.
जब तक चलोगे नहीं - जानोगे नहीं
मंजिल किस चिड़िया का - नाम है
कभी जानो - मानोगे नहीं -
आम उगाया खाया -नहीं तो
उसका स्वाद कैसे पहचानोगे .
तू यार बस चल - बेफिक्र मस्त -
चलना अपना ध्येय बना
क्या खोएगा - क्या मिलेगा
इसकी चिंता बिलकुल भूल जा .
No comments:
Post a Comment