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Monday, January 23, 2012

मुक्तक

बहूत सस्ता रहा सौदा प्यार  का यार 
ख़त के पैसे बचे- जवाब आया ही नहीं.


आज ये सोच के भी दिल डरता है .
कैसे गुजरे थे वो दिन - तुम्हारे बिन .


कौन किसका साथ देता है - ऐ दिल
तू भी अपना ना रहा - पराया हो गया .


पहचाने से नक्स ये चेहरा - जाने क्यों याद नहीं आता
आखिर हम कब - कहाँ मिले थे इससे पहले भी कहीं .


मैं यूँही लिखता रहा पर - पढने वाला ना मिला
जब तुम्ही ने ना पढ़ा -फिर किसी से क्या गिला .


चलते चलते - यहाँ तक तो आ गए .
जहाँ लिखा है - आगे ये रास्ता बंद है .


मेरी कोशिशें नाकाम नहीं - रंग लायेंगी जरुर .
वो देख - सूरज बादलों से बाहर निकला तो है .


मैं गलत था तो - जरा पहले बताया होता
ठीक रहता  - इस रस्ते पे ना आया होता .


ख़राब चीज है ये - इश्क महुब्बत यारो
वो मेरी ख़ाक होगी जो किसी की ना हुई . 


तेरे मेरे  सोचने से क्या होगा -
जिन्हें सोचना है वे सब मौन हैं
सवाली नज़र - पूंछती है उनकी
हाशिये पे खड़े हम तुम कौन हैं .



बहती रही उनकी - पाप की नदी यूँही
हम तो बस उसमे - जबरन उछाले गए .
गटर सब बंद थे - गलियों के यार
कलुष सब यमुना में बेतरह डाले गए .



हम तो वैसे भी बदल डाले गए
घर छूटा - मुंह के निवाले गए .
क्या बताएं - मजबूर थे हम
ना जाने कैसे कैसे - सांचों में
हुकूमत के - जब तब ढाले गए .
नहीं लगता है तू शैतान जैसा
जरा कम है - नहीं भगवान जैसा
तुझे जैसा बनाया उस खुदा ने  
लगता तो है कुछ  इंसान जैसा .  
यहाँ रहने को कौन आया -
रुके कुछ देर - चल देंगे .
वही मालिक है दुनिया का
यहाँ हम सब मुसाफिर हैं .
 

 

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