विरह की संवेदना मैं
भित्तियों के चित्र सी तुम .
प्यार तुमने भी किया था
प्यार मैंने भी किया है .
मरू जलती रेत और वे
ओस की नाजुक सी बुँदे .
आँख में पलता स्वप्न
साकार मैंने भी किया है .
रूठ जाती हो ना जाने
सेंकडों करती बहाने .
जाग कर यूँ रात भर -
मनुहार मैंने भी किया है .
आज वनिका बन के क्यों
फैलाए बैठी हो बही तुम .
प्यार के अहसास को
व्यापार तुमने ही किया है .
कौन जाने कौन हो तुम
चाहतों का सिलसिला है .
जिन्दगी जीना मेरा -
दुश्वार तुमने ही किया है .
काश मैं ये जान पाता
कोई तो मुझको बताता .
भटकनों में भटक जाता
पर ना तेरी राह आता .
भित्तियों के चित्र सी तुम .
प्यार तुमने भी किया था
प्यार मैंने भी किया है .
मरू जलती रेत और वे
ओस की नाजुक सी बुँदे .
आँख में पलता स्वप्न
साकार मैंने भी किया है .
रूठ जाती हो ना जाने
सेंकडों करती बहाने .
जाग कर यूँ रात भर -
मनुहार मैंने भी किया है .
आज वनिका बन के क्यों
फैलाए बैठी हो बही तुम .
प्यार के अहसास को
व्यापार तुमने ही किया है .
कौन जाने कौन हो तुम
चाहतों का सिलसिला है .
जिन्दगी जीना मेरा -
दुश्वार तुमने ही किया है .
काश मैं ये जान पाता
कोई तो मुझको बताता .
भटकनों में भटक जाता
पर ना तेरी राह आता .
बहुत खूबसूरती से बयाँ की गई अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजज्बातों को शब्दों में पिरोना कोई आपसे सीखे …… बहुत खूब
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