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Sunday, February 12, 2012

मुक्तक

देश दुनिया की चिंता में वो दिन-रात घुला घुला जाता है 
पर इस देश के दुर्भाग्य पर - एक भी आंसू नहीं बहाता है . 

रात भर के जगे थके सपने -
अपने आँचल में सुला लेता हूँ .
दुखों का दुःख - नहीं देखा जाता -
आवाज़ देके बुला लेता हूँ .
अकेला हूँ नहीं - तो डर कैसा
हाथ पकडे खड़े हज़ारों हैं .
दुश्मन तो मुठ्ठी भर होंगे
चाहने वाले तो बहूत सारे हैं .
दिल बहूत खुश है आज - ना जाने क्यों
कोई चुप चुप - इशारे कर रहा है जाने क्यों
बहूत शिद्दत से है अहसास - की आएगा कोई
छत की मुंडेर से उड़ा कागा - ना जाने क्यों .
मायूस क्यों आखिर उदास क्यों -जो
अपने पास हैं - तो फिर हताश क्यों .
भौर की बेला में दिल खोल- जरा
मादक सी हवा आने दे - वक्त
पंछी है - किसी और भी उड़ जाने दे.
प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती
आँखों से दिल तक - बे आवाज़ ,
दबे पाँव - उतर जाए ऐसी कोई
लिपि नहीं होती - भाषा नहीं होती .
मना का मतलब हरबार इनकार नहीं होता
कुछ शब्दों के 
अर्थ सदा उलटे हुआ करते हैं .
'पर' काट कर कहते हैं थोडा उड़ लिया करो
आती है हंसी उनकी इस मासूमियत पे यार ..
बस इतना ही कहा हुक्काम से - की हम लोग भूखे हैं .
कितने पड़े फिर इसके बाद - लात घूंसों की ना पूंछिये .
जो मैं कहूँगा तो - बुरा मान जाओगे
खुद आप समझने के ज़माने नहीं रहे .
ठंडा हुआ है खून पूरे देश का यारो -
जल में लगा दें आग - वो दीवाने नहीं रहे .
 ऊँचाइयों से डर मत - चींटी की तरह
फ़तेह कर ले - मदोन्मत चोटियों को .
तू ही तो है अन्नदाता - मेरे यार फिर
क्यों तरसा करे चंद टुकड़े रोटियों को.
ऊँचाइयों से मत डर - चींटी की तरह चढ़
या फिर जमीन पर हाथी की मौत मर .
अब किससे कहूं - जो जाकर तुझसे कहे
खाली वीरान है - आकर इस घर मे रहे .
फर्ज रख सामने - अधिकार छिपा कर रख .
सारा मत खर्च - कुछ तो बचा कर रख .
कोई दुश्मन नहीं - सब दोस्त हैं यहाँ प्यारे.
तू तो दातार है - यहाँ सबसे बना कर रख .
 
 
 
 
 
 
 
 
 

1 comment:

  1. रात भर के जगे थके सपने -
    अपने आँचल में सुला लेता हूँ .
    दुखों का दुःख - नहीं देखा जाता -
    आवाज़ देके बुला लेता हूँ .

    ....बहुत खूब!

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