सूरजसे चुंधियाती नजरें
क्या देखें खुली नहीं आँखें .
चौपट खुलें हैं द्वार अगर .
क्यों खिड़कीसे खुदको झांकें .
जबकल पर थी सारी आशा -
क्यों आज कहूं फिर मेरा था
रातोंकी दुआ करी हमने -
यूँही बदनाम अँधेरा था .
ये मूल प्रश्न है दुनिया का
जैसे भी टाला जाए टल .
जिसका भी आज अधूरा है
ना जाने कैसी होगी कल .
कुछ करो आज की बात यार
जो मन में है जो मन भाया
जो छूटा फिर ना हाथ लगे -
कल किसने देखा कब आया .
क्या देखें खुली नहीं आँखें .
चौपट खुलें हैं द्वार अगर .
क्यों खिड़कीसे खुदको झांकें .
जबकल पर थी सारी आशा -
क्यों आज कहूं फिर मेरा था
रातोंकी दुआ करी हमने -
यूँही बदनाम अँधेरा था .
ये मूल प्रश्न है दुनिया का
जैसे भी टाला जाए टल .
जिसका भी आज अधूरा है
ना जाने कैसी होगी कल .
कुछ करो आज की बात यार
जो मन में है जो मन भाया
जो छूटा फिर ना हाथ लगे -
कल किसने देखा कब आया .
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