एक फूल - खिला 
  
सुबह - आस्मां में 
चाँद छुट्टी पर था -
टहलता सूरज मिला .
प्रेम स्वछन्द नहीं -
बंधा है अदृष तारों से 
नीचे जमीं से - और
ऊपर सितारों से .
ऊपर सितारों से .
बीच में कहीं क्षीण सी 
डोर थामे - झूम गयी 
हिंडोले में - श्रृंगार किये 
पल पल बदलती आशाएं .
हृदय में पलती - 
झूमती चलती - इतराती 
कनखियों से देखती -
बहूत करीब से निकलती .
वो देखो - लचकती 
बल खाती - इठलाती 
एक बेल - अभी चढ़ी है 
विधुत स्तम्भ पर .
विभ्रम में फंसा तन -
मोह में घिरा मन . 
कहता है प्यार नहीं है कहीं - 
लालसाएं हैं यहाँ - या 
आने वाले कल की  
जिजीविशायें है .
 
 
 
No comments:
Post a Comment