Popular Posts

Wednesday, March 25, 2015

उबासी सत्यानाश आ गयी .

घोड़े को घास खा गयी
जनता को आस खा गयी .

जुल्फके नाग हटाये ही थे
चंदन की बास आ गयी .

जुआरी को ताश खा गयी -
गुलाम को रानी रास आ गयी .

गुम्बंद में गूंजती हैं आवाजें
चुप कर वो ख़ास आ गयी .

वो जरा सा करीब आये
आँखों को यार भा गयी .

लबों को चूमने को थे तभी -
उबासी सत्यानाश आ गयी .

Sunday, February 1, 2015

मैं इन्कलाब बेचता हूँ

बहूत हो गये जो संभलते नहीं अब -
पुराना मैं चुकता हिसाब बेचता हूँ .
ये नेता गवैये और खेलों के भैये -
खरीदो - लो पूरी जमात बेचता हूँ .

खादीकी किस्म खराब बेचता हूँ -
मफ़लर टोपी - जुराब बेचता हूँ .
हर पाँव में फिट आ जाए वो जूता -
हर चेहरे के नकली नकाब बेचता हूँ .

चीज़ ऐसी मैं इक नायाब बेचता हूँ -
गुलामी का जिन्दा सुहाग बेचता हूँ .
देशद्रोहियों को तेज़ जुलाब बेचता हूँ - 
बोलो खरीदोगे मैं इन्कलाब बेचता हूँ .