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Tuesday, May 27, 2014

कल किसने देखा कब आया .

सूरजसे चुंधियाती नजरें 
क्या देखें खुली नहीं आँखें .
चौपट खुलें हैं द्वार अगर .
क्यों खिड़कीसे खुदको झांकें .

जबकल पर थी सारी आशा -
क्यों आज कहूं फिर मेरा था 
रातोंकी दुआ करी हमने -
यूँही बदनाम अँधेरा था .

ये मूल प्रश्न है दुनिया का
जैसे भी टाला जाए टल .
जिसका भी आज अधूरा है
ना जाने कैसी होगी कल .

कुछ करो आज की बात यार
जो मन में है जो मन भाया
जो छूटा फिर ना हाथ लगे -
कल किसने देखा कब आया .