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Saturday, June 16, 2012

हम कितने आशावादी हैं

हम कितने आशावादी हैं 
जुगनू भी चमकता है
तू सूरज की तरह उसे 
अधर्य देने लगते हैं -और 
देवता की तरह मनौती मनाते हैं 

अंकुर फूटते ही - 
उसपर रंगीन धागे लपेटते 
चन्दन टीके लगाते हैं .
सामान्य सी खरपतवार को
देवता मानते - बताते हैं .

किसी बाबा- अन्ना
को हमारे जज्बात
किस तरह - जमीन
से उठाकर - सत्ता के
गलियारे तक पहुंचाते हैं

ये वो कहानी है - जो हम
अनगिनत बार -दोहराते हैं .
हम हिन्दुस्तानियों के
मिजाज - जमाने के कुछ
समझ में नहीं आते हैं .

इस देश में - जन क्रांति
एक - कपोल कल्पना है
बच्चे की आँख का देखा
धुन्दला सा सपना है .

पहली पाठशाला .

मेरी - किलकारी 
लगाने में - झूमता खुश होता .
गले लगाता -मेरे साथ
खेलता -मेरे जागने से 
पहले - राम जाने 
कब सोता .

बड़े जतन प्रयत्न से
मेरी हर सही गलत 
मांगों को - जाने कैसे कैसे 
पूरा करता -
मुझे -खिलाता और
खुद - अधपेट सोता .

अनपढ़ - गंवार
जाहिल सा - इंसान
वो कोई गुरु नहीं था -
पर पुरे जहाँ - में उससे
ज्यादा ज्ञानी - मेरी
जानकारी में - तब
कोई दूसरा नहीं था.
वो था - मेरी दुनिया की
पहली पाठशाला .

सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का
पहला शब्द - बाबा
सिखाने में - कितनी
मेहनत -कौशिश की थी
गर्व से उसका माथा -
तना था - और
उस दिन - मेरा उससे
पहला नाता बना था .

खेल -खिलौनों से खेलते
माया लोक की पौथी
बांचते - मेरे देखते देखते
उसके चेहरे की झुर्रियां
कब दुनिया के मानचित्र में
बदल गयी - मैं नहीं जान पाया .

आज दंतहीन - केशहीन
कृषकाय - इस आदमी में
मैं अपने उस पिता को -
ढूँढता हूँ - जो अब भी
मुझे - तृप्त निगाहों से
पूछता सा लगता है -
बबुआ - कोई और
खिलौना तो नहीं चाहिए .

(पितृ दिवस - पर सादर अपने पिता को समर्पित)

वो मेरी सलामती

वो मेरी सलामती की दुआ - करता है 
मैं उसकी छत्रछाया की चाह में जीता हूँ . 
दुनिया में केवल एक शक्श है - जिससे - 
आज भी मैं छिपकर सिगरेट पीता हूँ .

उसकी पर्ण कुटी से

उसकी पर्ण कुटी से -
कहीं बड़ा आलिशान 
घर है मेरा - फिर भी
कभी कभी - मिलने 
चला जाता हूँ .

अपनी पुरानी जंग लगी 
ट्राईसिकल - टूटे हुए खिलौने 
खेल में छिपा छिप्पी के वे कौने .

आज भी उसने कबाड़ी को
नहीं दिए - सहेजे रखें हैं .
ना जाने मैं कब आकर -
मांग बैठूं - लाओ मेरे
पुराने खिलोने -
वो बचपन के दिन - सलोने .

दिल करता है

दिल करता है - मैं
आज भी जिद करूँ
ठिनकुं -मचल जाऊं .

कोई ऐसी चीज मांगूं -
जो वो चाह कर भी -
ना दे सके - पर
सोचता हूँ - अब इस उम्र में
'उसे' - क्यों तंग करूँ 
सताऊं .

वैसे एक बात बताऊँ -
वो समझता- जानता है
मेरी औकात -
दुनिया की ऐसी कोई
चीज - आज भी नहीं है
जो मैं उससे मांगूं - और
ना पाऊं .

Thursday, June 14, 2012

वचन दो की तुम

वचन दो की तुम -पहले 
एक अच्छे इंसान बनोगे .
मानवता की सर्वोच्च 
पहचान बनोगे .

फिर देश भक्त -
भारत की शान बनोगे 
फिर उसके बाद - ही तो
अच्छे हिन्दू - या 
मुसलमान बनोगे . 

धर्म का अपना वजूद है - पर 
इतना ही नाता है - मानव को
सबसे प्रेम करना सिखाता है .
पर याद रख - देश 
धर्म से पहले आता है .

Monday, June 11, 2012

जहाँ नीरव सन्नाटा है

जहाँ नीरव सन्नाटा है 
जहाँ कोई नहीं आता है. 
वहां भी कोई है - जो
होले होले गुनगुनाता है .

उस मौन का संगीत 
आँख बंद करके - सुन .
गाते हुए झरने की -
आवाज़ की लय में
अपने प्यारे के -मनोहारी 
सतरंगी सपने बुन .

घाटी में पसरी अलसाहट
देती है दस्तक - उन
उड़ते हुए बादलों की -किससे
और कैसे है होड़ - कितनी
अजीब सी कैसी है उनकी धून .

देवदार के सीधे खड़े -
दरखतों से - उनकी
अडिग तपस्या का राज -
खुद उनके मुख से सुन.
अपनी सीमाएं देख
उनमे से - कोई एक कद -
अपने लिए हो सके तो चुन .

पूर्व से निकली अकेली

पूर्व से निकली अकेली
ठुमकती - मंथर गति से 
भौर की पहली किरण .
नभ रुपहला वस्त्र ओढ़े
आगवानी को खड़ी थी 
राह में चंचल पवन .

हडबडा सब सृष्टि जागी 
कालिमा उठकर के भागी 
जागरण के काल में - थी 
क्षीण रजनी चितवन .

और दिनकर चढ़ रहे थे
सीढियाँ दिनमान की .
है कवि की कल्पना - पर
पहल है प्रतिदान की .

और मंगलकामना संग
सुमधुर हो दिवस सबको
कह रहा हूँ - हो मुबारक
आज का दिन - आप सबको.

क्षणिकाएं

चढ़ते चढ़ते - चढ़ गए 
जन्नत की सारी सीढियाँ .
इस तरह से यार - हम 
फिर स्वर्गवासी हो गए.


वहां नहीं हैं - वो जहाँ थे
ढून्ढ रहा हूँ - कब से यार 
आखिर उस वक्त - वो 
यहाँ थे - तब हम कहाँ थे .


जोहड़ से चिकनी मिट्टी को निकाला गया 
बना के दीप - उसे फिर घर में बाला गया .
आधी रात को -जब चाँद छुट्टी कर गया 
सुबह सूरज को समंदर से निकला गया .


किसी के इंतज़ार में क्यों रुके रहिये दोस्तों 
चलना है जिसे - राह में वो खुद मिल जाएगा .


हमसफ़र वो थे - उम्र भर मैं जिनके साथ चला 
या वो जिसने मेरे बिन सफ़र शुरू किया ही नहीं .


वो कौन तेरे साथ - था जीवन की जंग में 
कौन संग जिया था तेरे - कौन संग मरा .


बिल्ली की लड़ाई - या बंदर था बहुत तेज़
इस देश को टुकड़ों में कर खाना पड़ा मुझे .
कुछ तिजोरी में डाले-और थोड़े जेब में रखे 
बाकी हवाला उंट कर भिजवाना पड़ा मुझे .


अच्छे भले सोये हुए थे - देशवासी यार 
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .


अँधेरे पास आते जा रहें हैं - 
उजाले जलके बुझ गए कब के .


अब छोड़ मेरे दिल - सुबह होने की आस 
यहाँ अंधेरों को कोसना बिलकुल मना है .


मर ही जायेंगी तालाब की सब मछलियाँ यार 
यहाँ घुटघुट के जीने से तो मरजाना भला है .


भागते फिर रहे परेशां से - मेरे तमाम ख्वाब 
हैरत है - आँखों में बसाने को कोई तैयार नहीं .


दूर रहना उससे - मुश्किल है बहूत यार 
पर कहाँ रहिएगा - जहाँ कोई ना हो .
वो हर कहीं छुपा है - चाहे तुझको पता ना हो 
दोनों 'जहां' में कोई जगह नहीं - वो जहाँ ना हो .


खुद अपने आप से बचने की कौशिश में 
जहाँ कोई ना हो - कहीं दूर चला जाता हूँ .
मगर तकदीर की लानत देखो - जहाँ
भी जाता हूँ - वहां खुद को खड़ा पाता हूँ .


मिल ही जाते - घर से निकल जो ढूँढने जाते 
यार दुनिया में रहते हो - कोई जन्नतनशीं नहीं.


एक तेरी दुनिया थी - एक मेरी दुनिया थी
बीच ये तीसरी दुनिया - कहाँ से आ गयी यार .


जो तू नहीं तो - और सही और नहीं और 
तकदीर में आसूं थे - तू दे या कोई और .


सपने देखे तो - आँखों को धुंधलके से बचा .
भीगी आँखों से ही बरसात हुआ करती है .


जुबाँ दी हैं खुदा ने - सच 
बोलने से डरता क्यों हैं 
हलक फाड़ के चिल्ला -यार 
जीते जी मरता क्यों है .







Saturday, June 9, 2012

जहाँ नीरव सन्नाटा है


जहाँ नीरव सन्नाटा है 
जहाँ कोई नहीं आता है. 
वहां भी कोई है - जो
होले होले गुनगुनाता है .

उस मौन का संगीत 
आँख  बंद करके - सुन .
गाते हुए झरने की -
आवाज़ की लय में
अपने प्यारे के -मनोहारी 
सतरंगी सपने बुन . 

घाटी में पसरी अलसाहट
देती है दस्तक - उन  
उड़ते हुए बादलों की  -किससे  
और कैसे है होड़ - कितनी
अजीब सी कैसी है उनकी धून .

देवदार के सीधे खड़े -
दरखतों से - उनकी 
अडिग तपस्या का राज -   
खुद उनके मुख से सुन. 
अपनी सीमाएं देख 
उनमे से - कोई एक कद - 
अपने लिए हो सके तो चुन . 

Thursday, June 7, 2012

चलो बतियाते हैं


कुछ और ना सही - चलो बतियाते हैं
प्यार महूब्ब्त के लम्बे चौड़े - भजन 
क्रिकेट के तराने - फ़िल्मी सुर में
जोरशोर से - कनस्टर पीट-पीट के 
ऊँची आवाज़ में गाते हैं .

हम बेनाम - फकीर 
जिसका ना कोई - वक्त 
ना परिपाटी की लकीर.
क्या हुआ जो हम - आम
आदमी हैं - और एक दम
हाशिये पे आते हैं .

एक दिन - 
सरकार की मुरझाई - 
कलि खिल ही जायेगी .
तेरे वोट के कीमत - तो
तुझे मिल ही जायेगी .
फ़िक्र कैसी - एक दिन 
जोड़-तोड़ करके मातागाँधी 
प्रधान मंत्री बन ही जायेगी .




Sunday, June 3, 2012

एक से एक भिखारी

एक से एक भिखारी जी 
लगे हैं लाइन में - अब 
मैं किसकी आरती उतारूंजी .
इज़ाज़त गर मिले तो 
जम जमके - इन्हें जूते 
भिगोके मारूंजी .

लुच्चे लफंगे कमीने - ये 
शक्ल से चोर हैं शातिर जनाब 
बाद में कहना मत - क्या क्या लूटा
लगा ना पाओगे - इसका हिसाब .

कीमती 'मत' बचा के रख लेना
ऐसे चोर लफंगे को कभी 'मत' देना .
आना - टक्का दो चार छदाम
इससे ज्यादा नहीं है इनका दाम 

क्षणिकाएं

सारे बम तो धमाका नहीं करते यार
चंद फुस्स होके भी तो रह जाते हैं -कई 
वजन में हलके होंगे - सेर नहीं अध्सेर होंगे 
तरबूज नहीं बेर होंगे - माफ़ कर देना 
पसंद जो ना आये - ऐसे ही मेरे कुछ शेर होंगे .

हद होती है - सहन करने की 
वजह होती है - कोई मरने की 
दोस्तों हमसे ये ना हो पायेगा
बाँध कर उसको रख नहीं सकता
जिसे जाना है वो तो जाएगा .

थक गया हूँ फिर भी - थोडा टहल आऊँ 
दूर की उस कल्पना के संग थोडा दूर जाऊं 
चाहता है मन मैं कोई गीत गाऊं गुनगुनाऊं
शब्द बहरे हो गए - किसे गाकर सुनाऊं .

जिधर भी देखता हूँ - उधर तुम हो 
मैं कहाँ हूँ - इसकी खबर नहीं यारो .

नाकाम सी कौशिश थी 
मगर काम कर गयी .
जीने के जज्बे को - मौत 
भी सलाम कर गयी .

मैं आज हूँ - कल ना रहूँ शायद
काश ये आज कभी कल ना हो .

याद तेरी है मेरे पास मगर - 
तू नहीं - बस यही कमी सी है 
पुरवाई सी कुछ चली तो है 
आज हवाओं में कुछ नमी सी है 
सच में ये सुबह कुछ नयी नयी सी है .

चाँदको दिनमें देखना क्या -
दिल चाहता है जल्दी रात हो .

वक्त के साथ सब कुछ बदल गया - 
मगर हम ना बदले...आज सोचता हूँ
बदल ही जाते तो अच्छा था .

पल पल रंग बदलता जग है .
प्रतिक्षण - जिसका रूप नया है .
कभी - रूप की पूरनमासी -
और कभी - सम्पूर्ण अमा है .

मैं रात भर कहता रहू और तुम सुनो 
तो ऐसी रात की मुश्किल सुबह होगी .

अब और क्या लिखें हम - सब लिख तो दिया है 
मिल जाए ख़त तुम्हें तो - फ़ौरन जवाब देना .

ये मेरे दोस्त हैं - और बाकी पडोसी हैं यार
अजनबी बनके मुझे आज तक कोई ना मिला .

अब तो - खोल दो किवाड़ दिल के यार 
बड़ी देर से कोई दरवाज़ा खटखटा रही है .

किसी ने आह कहा - किसी ने वाह कहा
समझा कोई भी नहीं - इस दिल की बात .

रुक ना पाऊंगा मैं अब - जाना होगा 
अभी किसी ने पीछे से पुकारा है मुझे .

वो हुक्काम है यार बार बार लिखते - मिटाते हैं 
हम वो हर्फ़ हैं -जो हमेशा हाशिये पर ही आते हैं .

अजनबी हैं - हमसे दिल ना लगाएं 
मौसम की तरह हैं - आये और जाएँ 

लोग आज नजरो से तोलते हैं - भांपते हैं
दरवाजे नहीं खोलते खिड़की से झांकते हैं .

मत निकलना अकेले 
इस भीड़ में तुम दोस्तों 
खोने का डर साथ लेकर
चल कोई हमदम मिले .

रौशनी के रोजने - घर अब कबूतर के बने .
ऐसे घर में क्या रहोगे - जो वीराने हो गए .
सर हिलाकर दोस्तों को दूर से मिलते हैं अब 
बहूत शिद्दत से लगा अब हम सयाने हो गए .

ख्वाबगाह होते नहीं - छत चारदीवारी ऐ दोस्त .
प्यार- प्यारी फूल क्यारी से चमन बसते यहाँ .

बिन अतिथि कक्ष के घर सजने -बनने लग गए . 
खिड़कियाँ और रोजने दीवारों में तब्दील हो गए .

सुन रहा हूँ - गौर से मैं 
अब कहो तुम . 
आज कुछ - भी ना छिपाओ 
सब कहो तुम .

वो खुदा - फिर भूल जाता है बना कर मूरतें 
उम्र जाती बीत - उसको ढूढने में ऐ खुदा .

लड़ रहें सब - छतो दीवारों की खातिर ऐ दोस्त 
'उस' जहाँ के भूतिया घर आज भी खाली पड़ें हैं .

खोल भी दो - आज पिंजड़े यारो . 
याद के पंछी - के पर झड़ने लगें हैं .

लिख रहा हूँ - इसलिए ये ख़त 
की तुम तक बात पहुंचे .
वर्ना क्यों लिखता भला - मैं 
सारी रात जाग कर ये चिट्ठियां .


अच्छे भले सोये हुए थे - देशवासी यार
ये अन्ना -बाबा ने इन्हें क्या सुंघा दिया .

बच्चे को कच्ची नींद से जगा दिया तुमने   
अब इसको चुप कराने - तेरा बाप आएगा .

तेरी कहानी अलग है

तेरी कहानी अलग है 
मेरा फ़साना और है 
दोस्ती अलग चीज है
यूँ आना-जाना और है .

मेरी ग़ज़ल कुछ और है
तेरा तराना और है 
मैं गुज़रे जमाने की चीज हूँ 
तेरा नया कुछ दौर है .

यूँही मिल गए - एक राह हम
कहीं दूर - साथ चलो चलें .
फिर ना रात की ये तनहाइयाँ
ना कोई नयी फिर भौर है .

क्षणिकाएं

भूखों मरना अभीष्ट है तो
घर में बैठे बैठे मर जाइए . 
दिल्ली को बख्श दो प्यारे - 
भीड़ मत बढाइये - तरस खाइए .
यहाँ का जुगारिया तंग - है 
पर ये सत्याग्रह का -
कौन सा ढंग हैं .


लगाने आग दिल को - मैं भी तो चला था .
चिंगारियों के जश्न में मैं ही तो जला था .


बेजुबान शब्द हैं तो क्या - ये कहानी नहीं है 
तुम कैसे यार हो -जो मेरी पीर पहचानी नहीं है .


लिपटे खड़े हैं दरख्त - खुद गलबाहियां लिए 
उतरी है सांझ - जमीं पर परछाइयाँ लिए .
इकला नहीं कोई यहाँ - हमदम हैं सभी के 
बैठी उदास तन्हाईयाँ - तन्हाईयाँ लिए .


दिल एक बार फिर वहीँ पीने के लिए चल
उन मस्त निगाहों में है शराब का सरूर .


महंगे नहीं सस्ते सही - जीने के वास्ते 
पापा मेरी आँखों को कोई ख्वाब दिला दो .


तहरीर थी झूठी - या तारीख झूठी थी 
सुनते यही हैं - हम कभी आज़ाद हुए थे .


मुझ सा अमीर आदमी - ढूंढे ना मिलेगा 
दिल के गरीब यूँ बहूत मिल जायेंगे जनाब .


इन रास्ते पर तुम जरा चलकर तो देखना 
जैसे जिया - मैंने वैसे जीकर तो देखना .


जो सोचते थे - वो ना हुआ 
जो हुआ - वो सोचा ना था .


फुर्सत तलाश करते रहे बस तमाम उम्र 
जीने की ख्वाहिशों में मर गए हम यार .


कहते जो पहले तो - हो जाता तुम्हारा 
तुम लेट हो गए - दिल मांगने में यार .


झूठे लम्बे लम्बे गीत 
पुरजोर आवाज़ में गाते रहे .
यूँ सच भी था जुबाँ पर - पर 
वो अकेले में गुनगुनाते रहे .


जिन्दगी के सौ झमेले हैं 
और हमारी तरह - ये भी 
हमसे कहीं ज्यादा अकेले हैं . 
जो अबल - लाचार या
दीन हीन हैं - फिर भी 
मैंने आजतक किसी 
जानवर को - अपने आप
मरते - आत्महत्या करते नहीं देखा .


घर के दरवाज़े - खिड़कियाँ बंद
कर दो यार ...ये पश्चिमी 
गर्म हवाएं - तेरा 
सब कुछ उड़ा ले जायेंगी .
याद रख - फिर इसके बाद 
शीतल पुरवैयाँ
फिर नहीं आएँगी .


मन पापी - तन बावरा 
कौन इसे समझाए .
सुबह निकल कर जाए है
रात घिरे ना आये .