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Friday, September 30, 2011

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .

किसी ने कहा - क्यों लिखते हो .
इस सड़ी गली व्यवस्था पर -
प्रेम पर ग़ज़ल - गाओ महुब्बत
के अनकहे फ़साने -
रोने बिसुरने के तो मिल जातें है  -
सेंकडों नहीं - करोड़ों बहाने .

सोचता हूँ - सभी ठीक ही तो कहते हैं .
क्या करूँ - ये आंसू तो हमारी पलकों से  -
ढलकते नहीं  हरदम ढीठ की तरह
जमें रहते हैं .

इन्हें किसी नदी- समंदर में
डाल दूं- या पूरी ताकत से
आस्मां की तरफ उछाल दूं  -पर
ऊपर उछाली हर चीज -
वापित आती तो है - धरती की
आकर्षणशक्ति - ये बतलाती तो है .

नहीं बच सकते - हर सवाल से
जो कदम कदम पर - पीछा करते हैं .
जो मुझे मरने नहीं देते - ना
खुद ही आत्म हत्या करते हैं .

कैसे असम्प्रक्त रहूँ - बताओ तो सही
इन जिन्दा सवालों को  - पहले किसी
अतल पाताल में दफनाओ तो सही .
इतने ही सुखी हो तो - वो खुश रहने
का मन्त्र मुझे भी सिखलाओ तो सही .
 

Thursday, September 29, 2011

जो मन के अँधेरे कोनों को

जो मन के अँधेरे कोनों को
शुभ्र प्रकाश से भर दे .
जैसे मुर्दा शरीर को -
पुन: जीवित कर दे .

आओ - उस परम पुरुष को
आर्त स्वर में पुकारें .
उसे ही धरती -आकाश
दसों दिशाओं में देखें/निहारे .

खोजें उस - परम
उत्तम पुरुष को .
जो कहीं भी हो - पर
अपना अस्तित्व - हम
सभी में विरूपित कर दे .
परमानंद की ज्योति
रोम रोम में भर दे .

Tuesday, September 27, 2011

" मेरा भारत महान "

" मेरा भारत महान "

ये किसके चेहरे हैं -
हम अंधे हैं की बहरे हैं -
ये कौन लोग हैं जो - चंद सिक्कों
की खातिर - जनपथ राजपथ पर -
काले गोरे विदेशियों के पीछे लट्टू से
घूमते -चक्कर लगाते हैं . 

शमशीर उठे ना उठे - भारी
भरकम देश का बोझ -बैट सा 
उठाये - दुनिया भर में चक्कर
लगाते हैं - राम जाने ये कैसा खेल है
की ११-१२ आदमी - खेल के नाम पर
लाखों - करोड़ों को बेवकूफ बनाते हैं .

हम इतने फालतू हैं की महीनो के
हिसाब से - मैदान या टीवी पर टकटकी
लगाते हैं - रन देश के बनते हैं - और
धन ये बटोर ले जाते हैं .

जो अहिंसा के नाम का खाते हैं -
मजलूम और निरीह भीड़ पर - सबसे
ज्यादा डंडा गोली -वो ही तो चलाते हैं .
वैसे बापू नाम के शक्श को -
अपना और देश का बाप -और 
धर्मपिता कहते -बताते हैं .

लप्म्पत, बेईमान ,चोर लुटेरे ही तो
जनतंत्र के सबसे बड़े गोल घरमें
जगह पाते हैं - जहाँ आम आदमी
कहीं 'ख़ास' ना हो जाए - उस को 
'आम' रहने रखने के -तौर तरीके
नियम कानून बनाये -सिखाये जाते हैं .

अलां फलां - बाबा बापू - महंत
धर्म के नाम पर अपनी दूकान चलाते हैं .
सरनाम होते हुए भी - बदनाम लोगों
की गिनती में आते हैं - मजे की बात 
धर्म की ध्वजा - सबसे पहले वोही तो
अपने हाथों में उठाते हैं - जिनके
खाते - स्विस बेंकों में पाए जाते हैं .

एक हम  हैं - इन चोरो की बरात के
दुल्हे  - एक बिना सींग की गाय
जिसे जब चाहे - जैसे चाहे कोई भी
कहीं से आये और दुह ले .

बिना चूंचपड के - हर पांच साल में
खुद पर अत्याचार करने का -
इन्हें - मुख्तारनामा लिखते हैं - और
हम उतने ही बुधू हैं -जितने की दीखते हैं .

Monday, September 26, 2011

लेकिन - तुम कह दो

लेकिन - तुम कह दो
मैं सह लूँगा - जो कहना है
अपने जज्बात से -
मैं खुद कह लूँगा.

परेशां ना रहो - कुछ तो कहो
बुतों से यूँ तो ना घिरे रहो .
अकेले - खो जाओगे
जो मुझ से अलग - अपने को
दूर खड़ा पाओगे .

छोडो  - वक्त की ठोकरें
इन्हें अभी और खाने दो .
सितारों से भी आगे - एक
नया जहाँ बसाने दो - अरे
उन्हें मत रोको - जो
जा रहें हैं उन्हें जाने दो .

कोई कमी रह गयी शायद
ये सपने - सोते हैं बहूत
इन्हें यूँ ही सो जाने दो
बहूत रोती हैं ये ऑंखें -
इन्हें थोडा और धुंधलाने दो -

अँधेरे - शाश्वत तो नहीं होते
इस जमीन को - सूर्य के
इसी तरह चक्कर लगाने दो .
भौर तो होनी है - होगी जरुर
एक बार जरा  - मुझे
रौशनी में तो आने दो .


Sunday, September 25, 2011

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं

खुद पर रोने की वजह कुछ भी -नहीं
दूसरों पर हंसने के सौ बहाने .
कोई चाहे माने ना माने -पर
हम सचमुच में हैं दीवाने .

जरा सा बोध हो जाए - वैसे ही
जैसे कोढ़ में खाज हो जाए .
रोने बिसुरने का मौका मिले -
भले जिन्दगी बर्बाद हो जाए .

आखिर हम -बात बेबात
रोते क्यों हैं - जानते हुए की
दुख के कारण होंगे - सेंकडों 
खुश होने के बहाने हजारों .

याद रख - ख़ुशी और गम
एक ही घर से आते हैं - जो
'उस' एक ही के द्वारा -
भिजवाये जाते हैं .

विचारो तो सही हम - खुश
होकर - या दुखी होकर ज्यादा
पछताते हैं ?  खुद सोचिये -
या फिर हम बताते हैं .

मानो ना मानो

मानो ना मानो -पर
बचपन में - मैं
सचमुच काफी बड़ा था .
नियम -कायदे कानून की
चौखट पकडे खड़ा था .

पर यौवन ने सारे - कायदे
फाड़ डाले - भविष्य की
चिंता से दूर - सब कुछ
हो गया बस राम हवाले .
ध्यान कुछ इतर चीजों में
बँटा था - ये सच है  उन दिनों
मेरा  - कद थोडा घटा था .

आज सर की कालिख - शुभ्र
हो गयी  - मन की स्थिरता
तन की अशुधि - हद तक धो गयी .
अब मैं फिर से बड़ा हूँ -
दंड के सहारे ही सही - पर
पूरी तरह से -अपने पैरों पर खड़ा हूँ .


Wednesday, September 21, 2011

हम जैसे भी हैं - ठीक हैं

हम जैसे भी हैं - ठीक हैं
हमें दूसरों से क्या - वो
चाहे कैसे भी हैं .

बदलना - बहूत कठिन
दूसरों को - अपनी राह
चलना आसान होता है
खुद हम नहीं खुदा - तो
दूसरा कैसे शैतान होता है .

शेर के ठीक ऊपर मचान होता है
हाथ बन्दूक हो तो भी - हरेक
आदमी कहाँ पहलवान होता है .
आम आदमी तो बस - यारो
जैसे बराए नाम होता है .
 

जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

मुस्कुराते हुवे चेहरे - कहकहे
लगाते - हँसते गाते हुवे लोग -
जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

बंद पलकों में - रंग बिरंगे
सतरंगी - मचलते हुए सपने
दूर तक - जहाँ तक नज़र
चली जाए - एक छोर से दूसरे
तक फैले मेरे अपने -
जाने क्यों अच्छे लगते हैं .

मैं आम से - ना जाने कब
ख़ास हो जाता हूँ - जब
बेआवाज दबे पाँव - कोई
नाजुक सा - हवा का झोका
मुझे - प्यार से सहला जाता है .
और बरबस - तुम मेरे अपने हो
कह कर - मुझे यूँही बहला जाता है .


वो जो महकी

वो जो महकी - की रात की रानी
शर्माती सी रही रात भर.
हरारते शरारतें -या
फिर दोनों - अब कैसे
कहें - हुई मुद्दत के -अब
कुछ भी याद नहीं .

पुरानी याद के - वे पीले पात
अब भी रह रह कर चटखते हैं .
वो एक सैलाब - समन्दर सा
ढलक जाता है - एक कतरा सा 
बन इन आँखों में - अब भी
मालूम नहीं जाने - क्यों
कैसे कहें  - कहाँ से चला आता है .

ये रूह - ये जिस्म अब जर्जर हो चला 
कुछ कहीं था - ना जाने कहाँ खो चला .
भटकती सी रहती है - उन
गुजरे हुए लम्हों में जिन्दगी .
अब मैं हूँ - और बस मेरी तन्हाई है .

Tuesday, September 20, 2011

वाह क्या शांति है

वाह क्या शांति है -
अवाम और हुक्मरान
दोनों खुश हैं .
अन्ना अपने घर गए -
रामलीला ख़तम -लोग
मैदान खाली कर गए .

पर दशहरा पास है -
रावण के मरने की -
बाकी - बची एक
धूमिल सी आस है .

पर दिवाली तो
दशहरे के बाद -
मनाई जाती है .
रावण अभी भी जिन्दा है -
देखते हैं - दीवाली इस बार
कैसे आती है .

Monday, September 19, 2011

अब ऐसी भी क्या जल्दी

अब ऐसी  भी क्या जल्दी  -
किश्तों में धीरे धीरे मरते हैं .
जीना कोई मजाक नहीं है - यार
जाने दो  - टुकड़ों में ही सही
हर पल आत्महत्या करते हैं .

क्या कहा - हम जिन्दा है .
हम तो वैसे भी - अपनी इस
बेहाल जिन्दगी पर शर्मिंदा है .
क्यों - दुखते घावों को कुरेदते हो .
अब संदेह की नजर से -हरएक
इंसान को क्यों देखते हो .

अभी मैं पिछले पल में ही
तो मरा था - फिर भी जिन्दा हूँ.
मौत के इस गंभीर मजाक पर
सच मानिये मैं बेहद शर्मिंदा हूँ .
 
ये अल -सुबह का मजाक नहीं
बीती रात का सच है - जान लो
हम जिन्दा दीखते जरुर हैं - पर
हैं नहीं - अब तो मान लो . 

वैसे भी कौन - जीता है
तेरी जुल्फ के सर होने तक
फ़ना हो जायेंगे सरकार -
हम तुम को खबर होने तक .

हमें झूठे सपनो के -
डरावने सच - मत सुनाइए
किसी रोज रात को नहीं
दिन में चले  आइये.

पर छोडो हटो - जाने दो इससे
तुम्हे क्या फर्क पड़ता है .
तुम्हारी बला से - कोई
कोई जिन्दा रहें - या मरता है . 

Thursday, September 15, 2011

बस एक इल्तिजा है



बस एक इल्तिजा है -
मेरे आसूं बस देखे - तू
किस और को ना दिखलाऊं .
स्वीकारो प्रभु विनती -
हार जाऊं तो बस -तेरे
काँधें पर ही सर टिकाऊ.

वे अश्रु अमर हो जाएँ
जो तेरी याद में - मैं बहाऊं .
चाहता है दिल - अभी
उड़कर तेरे पास चला आऊँ .

तू कौन है मेरा - अब
किस बिधि सब को -समझाऊं .
मेरा तो सर्वस्य ही तू हैं -
किस नाम से पुकारूँ - क्या
कह कर तुझे बुलाऊं .

कैसे मिलन होगा -
नहीं जानता - ये मूढ़
क्या  युक्ति करूँ - किस
जतन से इस दिल को- अब
तू ही बता - समझाऊं .

किसी ने स्नेह विह्ल हो कहा

किसी ने स्नेह विह्ल हो कहा -
हमें यूँ अकेले छोड़ कर- मत
जाना -कभी पार .

कभी मत जाना - तुम
क्षितिज के उस पार -जब
तुम्हारा यहीं  - बसता है
सकल प्रेम संसार .

सोचता हूँ - कैसे जा सकूंगा
उस महाप्रयाण पर -
तुमसे मिल के आज जाना -
बंधन मुक्त होना-
कितना कठिन है यार .



Tuesday, September 13, 2011

मैं सुंदर नहीं हूँ .

आन्तरिक सौन्दर्य भले हो.
कला कौशल भी होगा -
पर जानता हूँ ये बात की 
मैं सुंदर नहीं हूँ .

कभी कभी इर्ष्या होती है
देखकर कोई -
सुंदर चेहरा जो -
दिखा देता है मुझे आइना
जैसे मौन में भी
कह जाता है - 
तुम सुंदर नहीं हो .

एक दिन मैंने -
उससे कहा -
तू भी तो काला है .
पर कितने बड़े
दिल वाला है.

कितने सुंदर
असुंदर को समेटे
अपने आप से लपेटे  -
कितना मेहरबान है -
सारी दुनिया -
पूरा ब्रह्माण्ड जानता है -
तू ही तो भगवान है .

उसने कहाँ चन्दन में
भले होगी सुगंध-पर
उससे तो लिपटे रहते हैं -भुजंग.
वो चन्दन आखिर -किसके
काम आता है - अरे पगले
सुबह शाम - बिन नागा 
मुझ जैसे काले को ही तो
लगाया जाता है .
 
ऐसे रंग का क्या करेगा -
जिस जल को कोई पी ना सके  -
आखिर तूझे क्या मिलेगा .
ऐसा सागर - बनकर.
तृप्त कर लोगों की प्यास  -
मैली माटी की सही -
गागर बन कर .

तुझे मैंने अपने जैसा
तो बनाया है -
और हर युग में तू ही तो
मेरे काम आया है .

गंगा चाहे मैली हो - पर
लाखों की प्यास बुझाती है
मरने पर यहीं से मोक्ष देती है -
और सबके काम आती है .

क्या फर्क पड़ता है - जो तू रंग
का काला है - अरे काले तो
कृष्ण और राम थे -
उनसे सुंदर होने के क्या -
किसी और के पास भी
कोई प्रमाण थे .

 

Sunday, September 11, 2011

ना जाने क्यों - आज तुझसे मिलने को दिल चाह रहा है

ना जाने क्यों - आज
तुझसे मिलने को दिल
चाह रहा है - बता मुझे -
बुला रहा है - या तू
खुद मेरे पास आ रहा है .

चल तू ही आ जा मेरे -
दोस्त मेरे भाई -
लोगों के लिए भगवान्
मेरे लिए तो माखन चोर-
काला कृष्ण कन्हाई .
मैं जानता हूँ - मेरी बात
किसी की समझ में नहीं आई .

पर क्या करूँ - मेरे दिल में  
ये भगवान नहीं - दोस्त की
तरह रहता है - मेरी सुनता है
अपनी कहता है - बस ऐसे
ही जीवन चलता रहता है .

मैं बहूत खुश हूँ - उस को पाकर
वो बहूत प्रसन्न है -
मुझे अपना कर .
किसी का आखिर - क्या
बिगड़ जाता है - जब मेरा जिक्र
उसके साथ आता है .

नर नारायण की तरह - हम
दो दीखते जरुर हैं - पर मानले
हम अनेक नहीं - बस एक हैं. 



Saturday, September 10, 2011

तेरे सामने -हमारी आखिर हस्ती क्या है

तेरे सामने -हमारी
आखिर हस्ती क्या है -
तेरे वैकुण्ठ के सामने - हम
इंसानों की बस्ती क्या है .

हमारी औकात क्या है - तेरे
सामने चींटी का वजूद भले हो -
हमारी बिसात क्या हैं .

मन में अहम् -भाव
आता तो होगा - तू ही
कर्ता तू ही करतार  -
करता है सबका बेडा पार .

तेरे मन में क्या होता है -
तब सचसच कह दे यार .
पर नहीं - तू तो करतार है
कर्ता कहाँ है - कर्ता  भी हम हैं
और भर्ता भी हम हैं .

तू कहाँ किस कारण में आता है .
करोड़ों हाथों का सञ्चालन
करके भी तेरा हाथ कब और
कहाँ - पहचाना जाता है .

पर नहीं हैं हम - कृत्घन
तेरे किये अच्छे के गुण गाते हैं .
बुरा हो जाए तो अपने कर्मों- या
तकदीर को दोषी बताते हैं .



पता नहीं कैसे - चलाते हो

पता नहीं कैसे - चलाते हो
किस तरह कर पाते हो -
ये सब - हम से तो ये
छोटा सा घर नहीं चलता .

और तुम सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड-
को आखिर कैसे चलाते हो .
राम जाने -अपनी ऊँगली पर
कैसे कैसे नाच नचाते हो - .  

कुछ तो बताओ - यार
इतना अच्छा-बुरा करते हो
हम इंसानों के साथ - फिर भी
भगवान कैसे कहलाते हो -
और सर्वत्र पूजे जाते हो . 

Thursday, September 8, 2011

मेघ फिर से गहराए

मेघ फिरसे गहराए-
सुखी धरा - की गोद में
सावन फिर फिर -लौट आये.

काश ये ऋतू बनी रहे-
लौट के ना जाये -
कहीं से कोई भीगता हुआ  -
मेरी कल्पनाओं में
यूँही चला आये .

तुम नहीं जानते -
मैं वर्ष भर - जोहता हूँ
बाट तुम्हारी - हे मेघ
मेरी पांति - उन तक
तू ही तो पहूँचाये .





थोडा कम खा - ज्यादा गम खा.

थोडा कम खा -
ज्यादा गम खा.
वो राजा हैं -
उनकी गलती भूल जा.
किसी नेता को -ऊँगली
मत दिखा .
तू आम आदमी है -
बाज आ - बाद में
बहूत पछतायेगा -
यार मान जा .



Wednesday, September 7, 2011

हाथ में लाठी नहीं - बस वर दो .

हाथ में लाठी नहीं -
बस वर दो .
अपने पांवों से -
खुद चल सकूं
बस ऐसा कर दो.

आपकी मदद नहीं -
आशीर्वाद की दरकार है .
यहाँ -वहां सब ओर
आपकी ही सरकार है .

आप चाहें तो हमें -
अपनी कृपा से तर कर दें
उम्मीदों के सूखे खेतों को -
जल से लबालब भर दें .

मुट्ठी भर नहीं - पूरे
खलिहान की दरकार है
आप दुनिया के कर्ता हैं -
आप ही सरकार -
आपकी ही सरकार है .
प्रार्थी तो - बस आपके
अनुग्रह का तलबगार है .

एक उपवन होगा - मन में एक सपना था

एक उपवन होगा -
मन में एक सपना था
फूलों का देश होगा .
अपना - केवल अपना
परिवेश होगा .

मैंने तो केवल - चंद
फूल बोये थे - 
ये केक्टस ,नागफनी -
कहाँ से उग आये .
कोई अमरबेल -क्यों ना
इन पर बेतरह छा जाए .

कोई राह पूंछता हुआ -
क्यों ना यहाँ आ जाए .
यहीं रह जाए और - हमारे
दिलों पर छा जाए .

हम भूल जाएँ - की
हम बरगद के बूढ़े -दरख्त
नदी किनारे के पेड़ हैं .

कोई मिल गया - शायद


कोई मिल गया - शायद
पुकारा था - उसने बड़ी
शिद्दत से मनुहार से
थके पंखों से -बड़ी
बेबसी में - बहूत प्यार से .

और आ गया था - वो
फ़रिश्ता - स्वर्ग से उतरकर
उस नन्ही जान के-
सपनों में रंग भरने - उसे
गिरने से बचाने- उसे
सहारा देने -ढाढस बंधाने
टूटते साहस को फिर से बढ़ाने.

डूबते को तिनके का सहारा काफी
फिर नए जोश में - आकाश की
ऊँचाइयों को नन्हे परों पर-
तय करने को - मिल गया था
विश्वास जो खो गया था .

कभी कहीं मिले तो

कभी कहीं मिले तो -
तुम्हें बताऊंगा कितने सपने -
मैंने तुम्हारे लिए बुने थे- तुम्हें
जरुर सुनाऊंगा -मेरा
इंतज़ार करना - तुमसे मिलने
जीवन में एकबार - मैं जरुर आऊँगा .

तुम कौन हो - कहाँ हो
कैसे हो - कुछ तो बताओ .
हो सके तो मुझसे मिलने - आज
ही चले आओ - मैंने
आज तक तुम्हारी कल्पनाएँ की हैं
कभी देखा नहीं .

जिन्दगी बहूत छोटी है - हम जिन्दा हैं
ये भी एक भ्रम है - तुम कहीं
आसपास हो - क्या इतना कम है .


 

कहीं कोई - आज भी बाकी है

कहीं कोई - आज भी बाकी है
प्रेम की क्षीण सी डोर - जो
जीने के लिए -मुझे
सोते से उठाती है .

एक स्मित की रेखा -आज भी
चेहरे पर - यदाकदा आ जाती है
कोई है - कहीं हवाओं में
उड़ती हुई - गर्द क़दमों से
आज भी लिपट जाती है .

मेरे होने का कोई तो -मकसद है
जो जीने को कहता है - बार बार
मौत मुझे छू के -यूँही तो
हर बार नहीं निकल जाती है .

कहीं से - कोई आएगा जरुर 
ये मेघों की उडती हुए -पंक्तियाँ
जाने चुपके से मेरे -कानों में
शायद ये कह जाती हैं .




Tuesday, September 6, 2011

अकेले ही - तय करने होते हैं

अकेले ही -
तय करने होते हैं
धुल भरे - उबड़खाबड़ रास्ते.
जिन्दगी के .

जहाँ ना आज का पता है
ना कल की खबर .
आने वाले कल की चिंता में
मर जाते हैं - गुजर जाते हैं
इस पर चलते चलते -लोग

कहाँ से आते हैं - और
फिर ना जाने कहाँ चले जाते हैं -
लोग - ये जिन्दगी की सड़क
एक अनंत - और अनवरत
कभी ना ख़त्म होने वाला-
सफ़र है जिन्दगी  .