शिखर पर बैठे हुए -
ये किसके चहरे हैं .
मुंह पर नकाब डाले - हैं
राम जाने क्यों इतने पहरे हैं .
मंजिल तो नहीं है - फिर
इतने लोग यहाँ क्यों ठहरे हैं .
ये इतना चिल्लाते क्यों हैं -
क्या हम इतने बहरे हैं .
इस सभा में सब मौन क्यों हैं -
क्या कोई मर गया है - या
दिल के फासले बढ़ा गया /कम कर गया है .
गूंगे -बहरे अंधे हैं फिर भी
चिंतन में क्या इतने गहरे हैं .
भीड़ तमाशाई तो है फिर भी
हाथों में पोस्टर - और
जुबान पर ककहरे हैं -
मरे हुए लोगों की - हर
बात पर जय बोलते हैं
बड़े अजीब - ये कफ़न ओढ़े
मरे हुए से चेहरे हैं .
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