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Friday, October 7, 2011

ये अकेला चाँद - सारी रात

ये अकेला चाँद -
सारी रात ग़मगीन सा -
मौन हो टहलता है .
ना जाने मेरी तरह से 
इसका भी दिल -
क्यों नहीं बहलता है .

ये नदी दिन रात -
सतत यूँ ही बहती है -
अपनी ही मस्ती में -
ना जाने कैसे बेफिक्र सी
मस्त रहती है .
जुबान नहीं है फिर भी
कुछ तो कहती है .

ये मेरा क्षीण स्वर  ही सही
तुम तक जाके -
लौट आता तो है .
ये बंसी की मधुर धुनपर -
कोई सारी सारी रात
कुछ गाता तो है .

बहूत उमस है आज
कही दूर लगता है -
बरसा होगा सजल मेघ -
अब हर रोज मेरी -
छतके चक्कर लगाता तो है .

 



 

1 comment:

  1. फुर्सत के कुछ लम्हे--
    रविवार चर्चा-मंच पर |
    अपनी उत्कृष्ट प्रस्तुति के साथ,
    आइये करिए यह सफ़र ||
    चर्चा मंच - 662
    http://charchamanch.blogspot.com/

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